परिवार न्यायालयों की स्थापना में राज्य सरकारें नाकाम
देश की अलग अलग न्यायालयों में 3 करोड़ से भी ज्यादा मामलें अधर में लटके हैं। इन लंबित मामलों पर तुरन्त ध्यान दिए जाने की जरुरत है ताकि लोगों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कायम रहे। इसके लिए अलग से परिवार न्यायालय, त्वरित न्यायालय और लोक अदालत की व्यवस्था की गई है। लेकिन संसदीय समिति राज्य सरकार की कार्यवाही से सन्तुष्ट नही है। समिति के अनुसार इस तीव्रता से तो एक जिले मे एक न्यायालय खोलने में काफी लंबा समय लगेगा। उसके अनुसार राज्य सरकारो की जगह कानून और न्याय मंत्रालय कों यह काम अपने हाथ मे ले लेना चाहिए। गौरतलब है कि दस लाख आबादी वाले ‘ाहर में एक परिवार न्यायालय होना चाहिए। पारिवारिक मसलों के समाधान के लिए एक जिला एक परिवार न्यायालय का लक्ष्य तय करना चाहिए। इसके लिए अगर जरुरत हो तो परिवार न्यायालय कानून 1984 के तात्कालिक प्रावधानों में संशोधन भी कर सकते हैं। समिति का कहना है कि बहुत से राज्य मंद गति से इस पर अमल कर रहे हैंंं, वहीं कुछ मुख्यमंत्री इस पर विचार कर रहे है। कर्नाटक के गर्वनर का कहना है कि यह मामला अभी उच्च न्यायालय के विचाराधीन है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के अनुसार कोलकाता उच्च न्यायालय की सलाह से पांच जिलों मे परिवार न्यायालय खोलने के कदम उठाए जा चुके है।बाकी बचे हुए जिलो में भी वे परिवार न्यायालय खोलने की सोच रही है।दिल्ली की मुख्यमंत्री ने उल्लेख किया है कि दिल्ली हाईकोर्ट के सक्रिय जजों की कमेटी के अन्तर्गत ।परिवार न्यायालय जल्द ही तैयार होने वाले हैं। महाराष्ट्र सरकार के अनुसार परिवार न्यायालय का सिद्धांत यहां मान्य है। 11 स्थानों में परिवार न्यायालय खोलने का चुनाव कर लिया गया है। राजस्थान सरकार के अनुसार 14 परिवार न्यायालय स्थापित किए जा चुके है। अण्डमान निकोबार के प्रशासन का परिवार न्यायालय के लिए भवन बन चुके है अब इसकी स्थापना के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा। चंड़ीगढ़ अभी भी पंजाब द्वारा इन नियमों को लागू करने का इंतजा़र कर रहा है। वहीं अरुणाचल प्रदेश का कहना है कि राज्य में कोई ऐसा ‘ाहर नहीं है जिसकी जनसंख्या दस लाख से ज्यादा हो और परिवारिक मामले वहां आपस में ही सुलझा लिए जाते हैं। गोवा सरकार का भी लगभग यही कहना है। इसलिए वहां पर भी परिवार न्यायालय की स्थापना नहीं की जा सकती है। कुल मिलाकर राज्य और केन्द्र ‘ाासित प्रदेशों की सरकारें इस ओर उत्साहित नहीं है और बहुत ही कम ने इस प्रक्रिया को अपनाया है। इसके लिए समिति चाहती है कि राज्य सरकारें इसकी संभावनाओं को फैलाएं जिससे इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके।
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