संसदीय समिति ने उत्तर पूर्व के राज्यों में अलग-अलग उच्च न्यायलयों की स्थापना की मांग की है जिससे इन राज्यों के आदिवासी नियमों को संहिताबद्ध कानूनों में बदला जा सके।इसके साथ ही समिति ने मंत्रालय को त्वरित न्यायालय मामलों को जल्दी निपटाने से ज्यादा उचित परीक्षण और न्याय की ओर ध्यान देने की सलाह दी है।गौरतलब है कि उत्तरपूर्व क्षेत्र ;पुनर्गठनद्ध कानून 1971 के पारित होने के बाद पांच उत्तर.पूर्व राज्यों असमए मणिपुरए मेघालयए नागालैंण्डए त्रिपुरा के लिए एक ही गुवाहाटी हाईकोर्ट बनाया गया था । प्रशासनिक सुविधा के लिए गुवाहाटी हाईकोर्ट की छः ‘ााखाएं भी अलग राज्यों में थी ।
उत्तर पूर्व राज्यों में मुख्यतः आदिवासी कानून को मान्यता है। जिनका संहिता करण भी नहीं हुआ है। अतः कमेटी में सरकार से सभी तथ्यों का अध्ययन करने और उत्तर पूर्व के सभी राज्यों में उच्च न्यायालय खोलने की मांग की है। ताकि राज्यों के लोगों में फैले आदिवासी नियमों का संहिताकरण किया जा सके। ऐसे फैसले मान्य होगें। जो समय के साथ लिखित कानून में बदल जाएगें।इन कदमों के द्वारा हाईकोर्ट के निर्णय मान्य होंगे जिन्हें समय के साथ लिखित कानून में बदल दिया जाएगा। भविष्य में इन असंहिताबद्ध कानून और नियमों की हाई कोर्ट द्वारा व्याख्या करने पर नियमों को संहिताबद्ध कानूनों में समायोजित किया जा सकेगा और निर्णयों में भी एकरुपता बनेगी।
उत्तर पूर्व राज्यों में मुख्यतः आदिवासी कानून को मान्यता है। जिनका संहिता करण भी नहीं हुआ है। अतः कमेटी में सरकार से सभी तथ्यों का अध्ययन करने और उत्तर पूर्व के सभी राज्यों में उच्च न्यायालय खोलने की मांग की है। ताकि राज्यों के लोगों में फैले आदिवासी नियमों का संहिताकरण किया जा सके। ऐसे फैसले मान्य होगें। जो समय के साथ लिखित कानून में बदल जाएगें।इन कदमों के द्वारा हाईकोर्ट के निर्णय मान्य होंगे जिन्हें समय के साथ लिखित कानून में बदल दिया जाएगा। भविष्य में इन असंहिताबद्ध कानून और नियमों की हाई कोर्ट द्वारा व्याख्या करने पर नियमों को संहिताबद्ध कानूनों में समायोजित किया जा सकेगा और निर्णयों में भी एकरुपता बनेगी।
3 comments:
good idea
bahut acha likha meri subhkamnaye
aap aage bhi acha likhenge
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