Friday, March 20, 2009

उत्तर पूर्वे के लिए अलग अलग हो उच्च न्यायालय

संसदीय समिति ने उत्तर पूर्व के राज्यों में अलग-अलग उच्च न्यायलयों की स्थापना की मांग की है जिससे इन राज्यों के आदिवासी नियमों को संहिताबद्ध कानूनों में बदला जा सके।इसके साथ ही समिति ने मंत्रालय को त्वरित न्यायालय मामलों को जल्दी निपटाने से ज्यादा उचित परीक्षण और न्याय की ओर ध्यान देने की सलाह दी है।गौरतलब है कि उत्तरपूर्व क्षेत्र ;पुनर्गठनद्ध कानून 1971 के पारित होने के बाद पांच उत्तर.पूर्व राज्यों असमए मणिपुरए मेघालयए नागालैंण्डए त्रिपुरा के लिए एक ही गुवाहाटी हाईकोर्ट बनाया गया था । प्रशासनिक सुविधा के लिए गुवाहाटी हाईकोर्ट की छः ‘ााखाएं भी अलग राज्यों में थी ।
उत्तर पूर्व राज्यों में मुख्यतः आदिवासी कानून को मान्यता है। जिनका संहिता करण भी नहीं हुआ है। अतः कमेटी में सरकार से सभी तथ्यों का अध्ययन करने और उत्तर पूर्व के सभी राज्यों में उच्च न्यायालय खोलने की मांग की है। ताकि राज्यों के लोगों में फैले आदिवासी नियमों का संहिताकरण किया जा सके। ऐसे फैसले मान्य होगें। जो समय के साथ लिखित कानून में बदल जाएगें।इन कदमों के द्वारा हाईकोर्ट के निर्णय मान्य होंगे जिन्हें समय के साथ लिखित कानून में बदल दिया जाएगा। भविष्य में इन असंहिताबद्ध कानून और नियमों की हाई कोर्ट द्वारा व्याख्या करने पर नियमों को संहिताबद्ध कानूनों में समायोजित किया जा सकेगा और निर्णयों में भी एकरुपता बनेगी।

Wednesday, March 18, 2009

हिन्दुओ के गढ़

हिन्दु विद्यार्थियों का गढ बने पश्चिम बंगाल के मदरसे पश्चिम बंगाल के मदरसों से एक चैंकानें वाला आंकडा सामने आया है। आमतौर पर मदरसों को इस्लामिक शिक्षा के स्कूल कहा जाता है वहीं पश्चिम बंगाल में ज्यादातर हिन्दू विद्यार्थी विज्ञान और प्रौद्योगिकी से हटकर इस्लामिक षिक्षा की और आकर्शित हो रहे हैंं। राज्य के चार मदरसो मे हिन्दू विद्यार्थियो की संख्या सबसे ज्यादा है। इनमे उतरी दिनाजपूर जिले का कासबा एम एम हाई मदरसा ,कूच बेहर का इकमुखा साफियाबाद मदरसा,र्बुवान का ओरग्रम चेतुसपल्ली हाई मदरसा और मिदनापुर का चन्द्रकोना हाई मदासा “ाामिल है।यहा हिन्दू विद्यार्थियो की संख्या 57 से 64 प्रतिषत है। पश्चिम बंगाल मदरसा शिक्षण बोर्ड के अध्यक्ष ‘ाोहराब हुसैन के अनुसार कासबा के 1077 मे से 618 ओरग्रम के 868 मे से 554 चन्द्रकोना के 312 और इकमुखा के 480 विद्यार्थियों मे से 290 विद्यार्थी हिन्दू है। उनके अनुसार मदरसे अब इस्लामिक शिक्षा के साथ अब आधुनिक शिक्षा पर भी जोर दे रहे है।42 मदरसो मे कम्पयूटर प्रयोगशालाए है। जिन्हे 2009 तक 100 तक किए जाने की उम्मीद है। करीब सौ से ज्यादा मदरसे व्यवसायिक शिक्षा जिनमें ट्रेलरिंग ही नही बल्कि मोबाइल तकनीक से जुडी शिक्षाए भी उपलब्ध करा रहे है। यहा कुल मिला कर 506 मदरसे है जिनमे से 2009 मे ही खुलने वाले मदरसो की संख्या 52 है। इनमे 17 प्रतिशत विद्यार्थी और 11 प्रतिशत शिक्षक गैर मुस्लिम है। चन्द्रकोना मदरसे के सह अध्यापक बिभास चन्द्र धुरई के अनुसार इस मदरसे के एक किलोमीटर के दायरे मे 7 स्कूल हैं। फिर भी लोग अपने बच्चो को यहा भेजते है। स्कूलो मे उन्हे 375 रु फीस देनी पडती है। वहीें मदरसो मे 110 रु ही फीस देनी पडती है। ‘ाोहराब हुसैन के अनुसार मदरसे विद्यार्थियों और उनके परिजनो का विश्वास पाने मे सफल हो चुके हैंं मदरसों के सर्टिफिकेट किसी अन्य राष्ट्रीय स्तर की परिक्षा के बराबर ही हैंं। इनका पाठयक्रम भी राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से अलग नही है।

चुनावी हलचल

चुनाव आयोग ने 2009 लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र भारत सरकार को एक लाख अस्सी हजार इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन को सही करने और 1980-90 की मॉडल वाली डेढ़ लाख ईवीएम मशीनों को बदलने के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा है। चुनाव आयोग की तकनीकी समिति ने 1989-90 की पुरानी मॉडल मशीनों को हटाने का सुझाव दिया है। ताकि चुनाव परिणामों को जल्दी प्राप्त किया जा सके।इसके साथ ही संसदीय समिति ने भी चुनाव आयोग को मतदाता पहचान पत्र के लिए कुछ सुझाव दिए है।चुनाव आयोग ने मंत्रालय को ईवीएम मशीन के प्रयोग के लिए सुदूर गांवो में लोगों केा ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षित और जागरुक करने के लिऐ कहा है। जिन इलाकों में रेडियों व टीवी के साधनों की पहुंच नहीं है वहा पोस्टरेां द्वारा मतदाताओं को शिक्षित करने के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए। 2004 के लोकसभा चुनावों में लोगों को प्रशिक्षित करने डी ए वी पी द्वारा एक काम्पेक्ट डिस्क का प्रयोग अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए किया गया था। इसी को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग आगे के सुधार कार्य करेगा। चुनाव आयोग ने 11 राज्य और केंद्र ‘ासित प्रदेश में मतदाता पहचान पत्र का कार्य समाप्त कर चुका है। संसदीय समिति ने उम्मीद जताई है कि चुनाव आयोग निर्धारित समय सीमा में बाकी के बचे हुए मतदाता पहचान का कार्य पूरा कर लेगा। इसके साथ ही समिति ने चुनाव आयोग को बिना किसी गलती के मतदाता पहचान पत्र बनाने का भी सुझाव दिया है। असम, जम्मू-कश्मीर और नागालैंड में वो अभी भी मतदाता पहचान पत्र तैयार नही किए गए है। समिति के अनुसार जिला पर मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए जिला स्तर पर एक स्थायी कार्यालय होना चाहिए। जिससे मतदाता आसानी से अपना पहचान पत्र बनवा सके।

सांप्रदायिक सदभाव का अनूठा संगम है नौचंदी मेला

टूरिंग फोटो स्टूडियों मनचले युवकों का झुंड ऐश्वर्या राय के कटआउट की कमर में बॉहें डालकर फोटों खिंचवाते हुए तो कहीं पर नई नवेली दुल्हन अपने देहाती पति के साथ गज भर का घूधंट निकाले झूले पर बैठी होगी । ये किसी फिल्म का दश्य नही बल्कि दिल्ली से 60 किमी दूर मेरठ के नौचंदी मेले का दश्य है। इस मेले की खासियत का आलम यह है कि लोग पूरे साल बेसब्री से इस मेले का इंतजार काते है। यह मेला होली के बाद दूसरे रविवार से लगता है। कुंभ के बाद उत्तर भारत का यह सबसे बड़ा मेला है। सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक इस मेले में जहां हिन्दू आस्था का प्रतीक नवचंड़ी का मन्दिर है वहीं दूसरी ओर बाले मियां की मजार है। मुस्लिम लोक भाषा के अनुसार नये चांद ‘ाब्द से ही नौचंदी ‘ाब्द बना है। मजार के ठीक सामने नवरात्र ‘ाुरू होने पर श्रद्धालु भक्त नवचंड़ी के मन्दिर में सोने और चांदी के छत्र चढ़ाते है। उधर बाले मियां पर आयोजित उर्स मुबारक के मौके पर अकीदतमन्द जियारत करते है। और कव्वालियों के जरिए बाले मियां को याद किया जाता है। उनकी यह ऐतिहासिक मजार हजरत सालार मसूद बालें के नाम से उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनउ में 505 संख्या से पंजीकत है। बाले मियां के बारे में कहा जाता है।11 वीं ‘ाताब्दी में अलाउददीन खिलजी के सेनापति सैयद सालार मसूद उर्फ बाले मियां ने मेरठ में भीषण युद्ध लड़ा और बाद में धन जन की क्षति और भीषण रक्त पात से द्रवित होकर उन्होंने सेनापति पद से इस्तीफा दे दिया। और फकीर हो गये। मेरठ में जहां उनकी उंगली कट कर गिरी। वहां उनकी याद में मजार बन गई। कुरान ख्वानी तथा गुस्ले ‘ारीफ इस उर्स की प्रमुख रस्में है। मेले में प्राचीन चंड़ी मन्दिर का उल्लेख 1194 के दस्तावेजों से मिलता है। तैमूर के आक्रमण के समय एक हिन्दू ललना मधु चंडी सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुये। उनकी पुण्य स्मति में नवचंडी देवी मंदिर की नींव रखी गयी। 1184 में कुतुबुददीन ऐबक ने इसे जलमग्न करके यहां दरगाह का निर्माण किया। फिर ग्वालियर की रानी अहिल्याबाई ने दरगाह ध्वस्त करके इस मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा की। ये तो थी इतिहास की बात।आज यहां हर साल पचास हजार लोग मेला देखने आते है। पहले यहां पशु बिकते थे। लेकिन तब स ेअब तक उनका स्थान धार्मिक, व्यवसायिक सामान और कलात्मक चीजों ने ले लिया है। ये मेला साढ़े चार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक फैला है। इसका प्रबन्ध स्थानीय नगर निगम द्वारा किया जाता है।
लेकिन यहां आकर ऐसा लगता है मानो दो धार्मिक संस्कतियां गले मिल रही हो। एक तरफ आध्यात्म की बहती धारा में घंटी र्कीतन ‘ांख और वेदों के मंत्रोचारण और दूसरी तरफ कुरान ‘ारीफ के सिपारे और कुरान ख्वानी की दुआंए। सांप्रदायिक दंगो के दुस्वपन को ये विराम देती नजर आती है।नौचंदी मेले के परिसर में सुभाष द्वार, विजय द्वार और इन्द्रा द्वार देखने लायक है। पटेल मंडप पर आप विविध संस्कतियों की झलक भी मिलती है। ‘ााम को बल्बों की कतारों से रोशन नौचंदी मेले की दुकानें ऐसी लगती है मानो सितारे जमीं पर सजा दिए गये है। टीवी रिएल्टी ‘ाो और फिल्मों ने आज के युवा वर्ग को कितना भी क्यों न जकड़ा हो लेकिन यहां के नाटक नौटंकी का जादू आज भी लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। खाने के ‘ाौकीनों के लिए यहां पेशावरी हलवा पराठा, इलायची दाना नानखताई ठड़े केसर प्रमुख है। खरीददारी के लिए यहां अलग अलग राज्यों की प्रसिद्ध चीजें भी यहां मिलती है। कुल मिलाकर सांप्रदायिक एकता और संस्कति का अनूठा संगम है नौचंदी मेला

पोखरा

नेपाल में हिमालय और महाभारत श्रृंखला के बीचो बीच स्थित है पोखरा घाटी। संसार की एक ऐसी अनोखी घाटी जहां से 8000 मीटर उंचे पर्वतों को देखा जा सकता है। संसार में कोई भी ऐसा स्थान नहीं हैं जहां से इतनी कम दूरी से अद्भूद नजारों का लुत्फ उठाया जा सके। यह घाटी पूरी तरह से नदियों और झीलों से भरी हुई है। पनोरमा और हिमालय की पर्वत श्रृख्ंाला को आप पास से जाकर देख और छू सकते है। एक प्रकार से साहसिक कार्यो का प्रवेश द्वार है। यदि आप नौकायान के ‘ाौकिन हैं तो यहां की पेहवा झील जो सेती नदी में गिरती है वहां आप नौकायान का आनन्द ले सकते है। पर्वतारोहियों के लिए पोखरा में अन्नापूर्णा टेªक है जो संसार की टेªकिंग रुट में से एक है। परन्तु इसके लिए आप किसी सरकारी ऐजेंसी से ही रजिस्टेªशन करवाए। मौरिस हरजोग 1950 में पहले मानव थे जो 8000 मि. की अन्नपूर्णा पर्वतश्रृंखला पर चढ़े थे। उत्साहियों और साहसिक कार्यो के ‘ाौकीनों के लिए माउॅटेन बाइकिंग की भी व्यवस्था है। एक तरफ जंगलों में, सांस्कृति समुदायों में वहीं दूसरी ओर बड़े-बड़े पहाड़ों के बीच नदियों से बचते हुए माउॅटेन बाइकिंग करना अपने आप में एक चुनौती है। यदि आप हवा में पतंग या चील की तरह गांवों नदियों और झीलों के उपर से उड़ना चाहते है तो उसके लिए पैराग्लाइडिंग की भी सुविधा है। सितंबर से लेकर फरवरी तक आप इसका आनन्द उठा सकते हैं इसके अलावा यहां सितंबर से जून तक अल्ट्रा लाइट एयरक्राफट भी है जो आपको पहाड़ों के उपर आसमानों तक की यात्रा कराएगे। ये तो थी रोमांच की बात यदि आप कुछ यादगार और आराम के पल बिताना चाहते हैं तो उसके लिए भी यहां पूरा-पूरा इंतजाम है। नीले पानी में अपने परिवार के साथ नाव में बैठकर आप तनाव से दूर कुछ आरामदायक और अद्भूद पल बिता सकते हैं। पोखरा की झीलों और नदियों में मछलियों की भरमार है जिससे यहां आने वाले सैलानी ‘ाौकिया तौर पर घंटों नदियों के किनारे मछली पकड़ना पसंद करते हैं। तनाव को कम करने के लिए ध्यान, योगा, आर्युवेद धूप स्नान का भी पूरा मजा लिया जा सकता है। प्रकृति ने पोखरा को अद्वितीय उपहार दिए है जिसमें से एक है यहां की तितलियां और पक्षी। अन्नपूर्णा म्यूजियम में रंग-बिरंगे 500 प्रजातियां और पक्षियों की 523 प्रजातियां देखने को मिलेगी। पोखरा को सात झीलों का बगीचा भी कहा जाता है। बेगनास, रुपा, दीपांग, माल्दी, खास्ते, नूरानी और गुनडे झीलें हैं जहां आपको घूमने के लिए कम दाम पर लकड़ी की नाव किराए पर मिल जाएगी। दवाई बनाने के काम आने वाले पौधे और चारों ओर फैला हरा भरा जंगल पूरे वातावरण को स्वच्छ और रंगबिरंगा बनाए रखता है। यहां पक्षियों के लिए अन्नपूर्णा म्यूजियम, पर्वतारोहियों के लिए अन्र्तराष्ट्रीय पर्वत म्यूजियम देखने योग्य है। बराही और पेहवा झीलो के बीचों-बीच जहां हिन्दुओं के लिए भद्रकाली मंदिर बना है वहीं बौद्धों के लिए भी बौद्धमठ बने हुए हैं। कुल मिलाकर पोखरा हर तरह के यात्रियों के लिए असाधारण पर्यटन स्थल है, पैराग्लाइडिंग, माउॅटेन बाइकिंग, रेफटलिंग जैसे रोमांचकारी कारनामे करने वालों की पहली पसंद है पोखरा।
परिवार न्यायालयों की स्थापना में राज्य सरकारें नाकाम

देश की अलग अलग न्यायालयों में 3 करोड़ से भी ज्यादा मामलें अधर में लटके हैं। इन लंबित मामलों पर तुरन्त ध्यान दिए जाने की जरुरत है ताकि लोगों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कायम रहे। इसके लिए अलग से परिवार न्यायालय, त्वरित न्यायालय और लोक अदालत की व्यवस्था की गई है। लेकिन संसदीय समिति राज्य सरकार की कार्यवाही से सन्तुष्ट नही है। समिति के अनुसार इस तीव्रता से तो एक जिले मे एक न्यायालय खोलने में काफी लंबा समय लगेगा। उसके अनुसार राज्य सरकारो की जगह कानून और न्याय मंत्रालय कों यह काम अपने हाथ मे ले लेना चाहिए। गौरतलब है कि दस लाख आबादी वाले ‘ाहर में एक परिवार न्यायालय होना चाहिए। पारिवारिक मसलों के समाधान के लिए एक जिला एक परिवार न्यायालय का लक्ष्य तय करना चाहिए। इसके लिए अगर जरुरत हो तो परिवार न्यायालय कानून 1984 के तात्कालिक प्रावधानों में संशोधन भी कर सकते हैं। समिति का कहना है कि बहुत से राज्य मंद गति से इस पर अमल कर रहे हैंंं, वहीं कुछ मुख्यमंत्री इस पर विचार कर रहे है। कर्नाटक के गर्वनर का कहना है कि यह मामला अभी उच्च न्यायालय के विचाराधीन है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के अनुसार कोलकाता उच्च न्यायालय की सलाह से पांच जिलों मे परिवार न्यायालय खोलने के कदम उठाए जा चुके है।बाकी बचे हुए जिलो में भी वे परिवार न्यायालय खोलने की सोच रही है।दिल्ली की मुख्यमंत्री ने उल्लेख किया है कि दिल्ली हाईकोर्ट के सक्रिय जजों की कमेटी के अन्तर्गत ।परिवार न्यायालय जल्द ही तैयार होने वाले हैं। महाराष्ट्र सरकार के अनुसार परिवार न्यायालय का सिद्धांत यहां मान्य है। 11 स्थानों में परिवार न्यायालय खोलने का चुनाव कर लिया गया है। राजस्थान सरकार के अनुसार 14 परिवार न्यायालय स्थापित किए जा चुके है। अण्डमान निकोबार के प्रशासन का परिवार न्यायालय के लिए भवन बन चुके है अब इसकी स्थापना के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा। चंड़ीगढ़ अभी भी पंजाब द्वारा इन नियमों को लागू करने का इंतजा़र कर रहा है। वहीं अरुणाचल प्रदेश का कहना है कि राज्य में कोई ऐसा ‘ाहर नहीं है जिसकी जनसंख्या दस लाख से ज्यादा हो और परिवारिक मामले वहां आपस में ही सुलझा लिए जाते हैं। गोवा सरकार का भी लगभग यही कहना है। इसलिए वहां पर भी परिवार न्यायालय की स्थापना नहीं की जा सकती है। कुल मिलाकर राज्य और केन्द्र ‘ाासित प्रदेशों की सरकारें इस ओर उत्साहित नहीं है और बहुत ही कम ने इस प्रक्रिया को अपनाया है। इसके लिए समिति चाहती है कि राज्य सरकारें इसकी संभावनाओं को फैलाएं जिससे इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके।

Wednesday, February 18, 2009

रेल बजट के बोझ के मारे बेचारे कुली से गंग्मन

पगार
भी नही बढ़ा हैं और बीवी बच्चों को भी साथ नही रख सकतेबहुत महनत का कम करना पड़ता हैं इससे अच्छे तो हम कुली ही अच्छे थे ये शब्द हैं पुरानी दिल्ली रलवे स्टेशन के कुली से गैंगमैन बने राजस्थान के तुलसीराम का तुलसीराम का कसूर सिर्फ़ इतना था के वो १२वे पास हैं और पुरी तरह से इस पद के योग्य थे
वो कुली जो इसके लिए योग्य नही पाए गए थे शायद अपने आपको किस्मतवाला समझ रहे हैं ये लोग एक दिन में २००से ३०० रुपए कमा कर लेते यानि महीने के नो से दस हजार इनकी एक एक सीट का लाइसेंस की कीमत १से २ लाख के बीच होती हैं तो आखिर इन्हे गैंग मेंन बनने की क्या जरुरत