Wednesday, March 18, 2009


सांप्रदायिक सदभाव का अनूठा संगम है नौचंदी मेला

टूरिंग फोटो स्टूडियों मनचले युवकों का झुंड ऐश्वर्या राय के कटआउट की कमर में बॉहें डालकर फोटों खिंचवाते हुए तो कहीं पर नई नवेली दुल्हन अपने देहाती पति के साथ गज भर का घूधंट निकाले झूले पर बैठी होगी । ये किसी फिल्म का दश्य नही बल्कि दिल्ली से 60 किमी दूर मेरठ के नौचंदी मेले का दश्य है। इस मेले की खासियत का आलम यह है कि लोग पूरे साल बेसब्री से इस मेले का इंतजार काते है। यह मेला होली के बाद दूसरे रविवार से लगता है। कुंभ के बाद उत्तर भारत का यह सबसे बड़ा मेला है। सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक इस मेले में जहां हिन्दू आस्था का प्रतीक नवचंड़ी का मन्दिर है वहीं दूसरी ओर बाले मियां की मजार है। मुस्लिम लोक भाषा के अनुसार नये चांद ‘ाब्द से ही नौचंदी ‘ाब्द बना है। मजार के ठीक सामने नवरात्र ‘ाुरू होने पर श्रद्धालु भक्त नवचंड़ी के मन्दिर में सोने और चांदी के छत्र चढ़ाते है। उधर बाले मियां पर आयोजित उर्स मुबारक के मौके पर अकीदतमन्द जियारत करते है। और कव्वालियों के जरिए बाले मियां को याद किया जाता है। उनकी यह ऐतिहासिक मजार हजरत सालार मसूद बालें के नाम से उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनउ में 505 संख्या से पंजीकत है। बाले मियां के बारे में कहा जाता है।11 वीं ‘ाताब्दी में अलाउददीन खिलजी के सेनापति सैयद सालार मसूद उर्फ बाले मियां ने मेरठ में भीषण युद्ध लड़ा और बाद में धन जन की क्षति और भीषण रक्त पात से द्रवित होकर उन्होंने सेनापति पद से इस्तीफा दे दिया। और फकीर हो गये। मेरठ में जहां उनकी उंगली कट कर गिरी। वहां उनकी याद में मजार बन गई। कुरान ख्वानी तथा गुस्ले ‘ारीफ इस उर्स की प्रमुख रस्में है। मेले में प्राचीन चंड़ी मन्दिर का उल्लेख 1194 के दस्तावेजों से मिलता है। तैमूर के आक्रमण के समय एक हिन्दू ललना मधु चंडी सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुये। उनकी पुण्य स्मति में नवचंडी देवी मंदिर की नींव रखी गयी। 1184 में कुतुबुददीन ऐबक ने इसे जलमग्न करके यहां दरगाह का निर्माण किया। फिर ग्वालियर की रानी अहिल्याबाई ने दरगाह ध्वस्त करके इस मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा की। ये तो थी इतिहास की बात।आज यहां हर साल पचास हजार लोग मेला देखने आते है। पहले यहां पशु बिकते थे। लेकिन तब स ेअब तक उनका स्थान धार्मिक, व्यवसायिक सामान और कलात्मक चीजों ने ले लिया है। ये मेला साढ़े चार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक फैला है। इसका प्रबन्ध स्थानीय नगर निगम द्वारा किया जाता है।
लेकिन यहां आकर ऐसा लगता है मानो दो धार्मिक संस्कतियां गले मिल रही हो। एक तरफ आध्यात्म की बहती धारा में घंटी र्कीतन ‘ांख और वेदों के मंत्रोचारण और दूसरी तरफ कुरान ‘ारीफ के सिपारे और कुरान ख्वानी की दुआंए। सांप्रदायिक दंगो के दुस्वपन को ये विराम देती नजर आती है।नौचंदी मेले के परिसर में सुभाष द्वार, विजय द्वार और इन्द्रा द्वार देखने लायक है। पटेल मंडप पर आप विविध संस्कतियों की झलक भी मिलती है। ‘ााम को बल्बों की कतारों से रोशन नौचंदी मेले की दुकानें ऐसी लगती है मानो सितारे जमीं पर सजा दिए गये है। टीवी रिएल्टी ‘ाो और फिल्मों ने आज के युवा वर्ग को कितना भी क्यों न जकड़ा हो लेकिन यहां के नाटक नौटंकी का जादू आज भी लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। खाने के ‘ाौकीनों के लिए यहां पेशावरी हलवा पराठा, इलायची दाना नानखताई ठड़े केसर प्रमुख है। खरीददारी के लिए यहां अलग अलग राज्यों की प्रसिद्ध चीजें भी यहां मिलती है। कुल मिलाकर सांप्रदायिक एकता और संस्कति का अनूठा संगम है नौचंदी मेला

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