राष्टीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े चोंका देने वाले हैं इसके अनुसार २००५ में महिला अपराध के केवल २०प्रतिशद दोषियों को ही सज़ा मिल पाई हैं वही २००६ और २००८ में यह प्रतिशत क्रमश १७.५ और १५ प्रतिशत से भी कम हैं आख़िर औरतो को न्याय के लिए कितना इंतजार करना पड़ता हैं क्या वाकई ये मान करचला जाए की महिलाएं इस देश में असुरक्षित हैं या इस देश की कानून व्यवस्था अभी भी लचर हैं ऊपर से दिल्ली की मुख्यमंत्री जी का बयान के अनुसार तो महिलायों को रात के समय अकले घर से बहार ही नही निकलना चाहिए नॉएडा के गैंग रैप ने तो एक बार फ़िर ये बहस छेड दी हैं क्या नारियो को पूजने वाला देश इस प्रकार के महिला अपमानों को चुप चाप सहता रहेगा क्या हजारो सालो से चली आ रही परम्परा को युए ही शर्मसार होना padega
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